Impact of rising temperatures on Indian agriculture
भूमिका
भारत एक कृषि-प्रधान देश है, जहाँ की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर करता है। हाल के वर्षों में, बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र में कई चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। इस लेख में, हम भारतीय कृषि पर बढ़ते तापमान के प्रभाव का एक क्षेत्रीय विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि यह समस्या विभिन्न क्षेत्रों में किस प्रकार की है।
उत्तर भारत में कृषि पर तापमान का प्रभाव
{Effect of temperature on agriculture in North India}
उत्तर भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश, गेहूँ और चावल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के किसान सिंचाई पर अत्यधिक निर्भर रहते हैं।
बढ़ते तापमान का यहाँ के कृषि पर निम्नलिखित प्रभाव देखा गया है:
- पानी की कमी: बढ़ते तापमान के कारण जल स्रोतों का सूखना, जैसे कि नदियों का बहाव कम होना और भूजल स्तर का गिरना। इसका परिणाम यह होता है कि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे फसल की पैदावार पर सीधा असर पड़ता है।
- फसल का उत्पादन घटता है: तापमान में वृद्धि से गेहूँ और चावल की पैदावार में कमी आती है। गर्मी की लहरें फसलों को प्रभावित करती हैं, जिससे पैदावार कम हो जाती है और किसान आर्थिक संकट में फंस जाते हैं।
पूर्वी भारत में कृषि पर तापमान का प्रभाव {Impact of temperature on agriculture in eastern India}
पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल, बिहार, और ओडिशा में धान की खेती मुख्यतः की जाती है। यहाँ के किसान मानसून पर निर्भर होते हैं। बढ़ते तापमान का यहाँ पर भी काफी नकारात्मक प्रभाव देखा जा रहा है।
- मानसून में अनिश्चितता: तापमान में वृद्धि के साथ मानसून में भी अनिश्चितता बढ़ गई है। कभी-कभी अत्यधिक बारिश होती है तो कभी सूखा पड़ता है, जिससे फसल बर्बाद हो जाती है।
- फसल रोगों का बढ़ना: गर्म और आर्द्र वातावरण के कारण फसल रोगों और कीटों का फैलाव अधिक हो जाता है। इस कारण धान और अन्य फसलों की पैदावार प्रभावित होती है और किसानों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।
पश्चिमी भारत में कृषि पर तापमान का प्रभाव {Impact of temperature on agriculture in western India}
राजस्थान और गुजरात जैसे पश्चिमी भारतीय राज्य सूखे और पानी की कमी के लिए जाने जाते हैं। इन क्षेत्रों में पहले से ही कृषि चुनौतीपूर्ण है, और बढ़ता तापमान इस स्थिति को और खराब कर रहा है।
- सूखा और पानी की कमी: यहाँ का तापमान बढ़ने से सूखे की स्थिति और भी गंभीर हो गई है। सिंचाई के पानी की कमी के कारण किसान फसलें उगाने में सक्षम नहीं हो पाते हैं, जिससे उनकी आजीविका पर गहरा असर पड़ता है।
- फसल विविधता में कमी: गर्मी के कारण फसल विविधता भी प्रभावित होती है। किसान केवल उन्हीं फसलों की खेती कर रहे हैं जो कम पानी में भी जीवित रह सकती हैं, जिससे पोषण सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न हो जाता है।
दक्षिण भारत में कृषि पर तापमान का प्रभाव {Impact of temperature on agriculture in South India}
दक्षिण भारत के राज्य जैसे कि तमिलनाडु, केरल, और कर्नाटक में चावल, नारियल, और मसालों की खेती होती है। यहाँ पर भी तापमान में वृद्धि का कृषि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ रहा है।
- तटीय क्षेत्रों में समुद्र का स्तर बढ़ना: बढ़ते तापमान के कारण समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों में खारीकरण की समस्या बढ़ गई है। खारी पानी खेतों में घुस जाता है, जिससे फसलों की उपज में कमी आती है।
- सूखा और मानसून की अनियमितता: दक्षिण भारत में सूखे की घटनाओं में वृद्धि हुई है और मानसून भी अनियमित हो गया है। इसका सीधा असर चावल और अन्य महत्वपूर्ण फसलों की पैदावार पर पड़ता है।
उपाय और समाधान
भारतीय कृषि को बढ़ते तापमान के प्रभाव से बचाने के लिए कुछ प्रमुख उपायों की आवश्यकता है:
- सतत सिंचाई प्रणाली: सूखे और पानी की कमी से निपटने के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी सतत सिंचाई प्रणालियों को अपनाना चाहिए।
- फसल विविधता को बढ़ावा: केवल उन फसलों पर निर्भर न रहें जो अधिक पानी मांगती हैं। किसानों को सूखे सहनशील फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- जल संरक्षण: जल संरक्षण की तकनीकों, जैसे कि वर्षा जल संचयन, और पानी के उचित उपयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- जलवायु-प्रतिरोधी बीज: वैज्ञानिक शोध और नवाचार के माध्यम से जलवायु-प्रतिरोधी फसल बीजों का विकास और वितरण किया जाना चाहिए।
- कृषि शिक्षा और प्रशिक्षण: किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में जागरूक करना और उन्हें नई तकनीकों और कृषि पद्धतियों के बारे में शिक्षित करना जरूरी है।
निष्कर्ष
बढ़ते तापमान का भारतीय कृषि पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की चुनौतियाँ सामने आ रही हैं, जिनसे निपटने के लिए तत्काल उपायों की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए कृषि पद्धतियों में सुधार और नई तकनीकों को अपनाकर ही हम इस संकट से उबर सकते हैं और किसानों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
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