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Zero Budget Natural Farming in india: बिना लागत के कृषि में नई क्रांति

Zero Budget Natural Farming in india

Zero Budget Natural Farming in india

भारत, जिसका आर्थिक ढाँचा मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है, कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। बढ़ती लागत, मिट्टी की बिगड़ती सेहत और रासायनिक उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता ने किसानों को कठिन परिस्थितियों में डाल दिया है। इन समस्याओं के बीच, एक अभिनव दृष्टिकोण जिसे Zero-Budget Natural Farming (ZBNF) कहा जाता है, उभर कर आया है। यह एक ऐसा विकल्प है जो स्थिरता, लचीलापन और लागत-प्रभावशीलता का वादा करता है।

Zero Budget Natural Farming क्या है?

Zero-Budget Natural Farming (ZBNF) एक कृषि पद्धति है जो प्राकृतिक तरीकों पर आधारित है, बिना बाहरी इनपुट्स जैसे सिंथेटिक उर्वरक, कीटनाशक या बाजार से खरीदे गए बीजों पर निर्भर हुए। “Zero-budget” का अर्थ यह है कि किसान बिना कर्ज लिए खेती कर सकते हैं, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति बेहतर हो सकती है।

इस पद्धति को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित सुभाष पालेकर ने 1990 के दशक के अंत में शुरू किया था। ZBNF प्राकृतिक संसाधनों जैसे गोबर, गौमूत्र, फसल के अवशेष और अन्य जैविक सामग्री पर जोर देती है, जो स्वस्थ और उत्पादक फसल सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं। इस पद्धति में स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखा जाता है, जैव विविधता को बढ़ावा दिया जाता है, और कीट और बीमारियों से फसलों की रक्षा की जाती है।

ZBNF के मुख्य सिद्धांत

Zero-Budget Natural Farming के मुख्य सिद्धांत चार प्रमुख तकनीकों पर आधारित हैं, जो इस प्रणाली को समग्र, आत्मनिर्भर और पर्यावरण के अनुकूल बनाते हैं:

  1. जीवामृत: यह गोबर, गौमूत्र, गुड़, दालों और मिट्टी से बना एक किण्वित माइक्रोबियल कल्चर है। जीवामृत मिट्टी में सूक्ष्मजीव गतिविधि को बढ़ाने और मिट्टी को पोषक तत्वों से समृद्ध करने के लिए लगाया जाता है।
  2. बीजामृत: बीजों को एक प्राकृतिक घोल से उपचारित किया जाता है, जिसमें गौमूत्र, चूना और अन्य सामग्रियाँ होती हैं, जिससे उन्हें कीट और बीमारियों से बचाया जा सके।
  3. मल्चिंग: फसल के अवशेषों, पत्तियों और घास जैसी जैविक सामग्री से मिट्टी को ढकना, जिससे नमी बनी रहती है और मिट्टी का कटाव कम होता है।
  4. वापासा: इस सिद्धांत में मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखने की बात कही गई है, बिना अधिक पानी का उपयोग किए। यह गहरी जड़ प्रणाली विकसित करने के लिए पौधों को प्रोत्साहित करता है।

ZBNF के लाभ

1. खर्चों में कमी

Zero-Budget का अर्थ है कि रासायनिक इनपुट्स की महंगी लागत से छुटकारा पाया जा सकता है। ZBNF द्वारा गोबर, गौमूत्र और जैविक खाद जैसे संसाधनों का उपयोग करके खेती की जाती है, जिससे खर्चों में भारी कमी आती है।

2. मिट्टी की सेहत में सुधार

रासायनिक उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करता है। ZBNF द्वारा प्राकृतिक इनपुट्स के उपयोग से मिट्टी की सेहत में सुधार होता है और जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है।

3. पर्यावरण के अनुकूल

ZBNF पर्यावरण के लिए अनुकूल है क्योंकि इसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है। यह प्रदूषण को कम करता है और जैविक संतुलन को बनाए रखता है।

4. जल संरक्षण

वापासा और मल्चिंग जैसी तकनीकों के कारण ZBNF में जल की खपत कम होती है। यह विशेष रूप से सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए फायदेमंद है।

5. बेहतर फसल उत्पादन और लचीलापन

ZBNF में प्राकृतिक तरीकों से उत्पादित फसलें अधिक पौष्टिक और रोग-प्रतिरोधी होती हैं, जिससे किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

भारतीय कृषि में ZBNF का प्रभाव

सरकारी समर्थन

Zero Budget Natural Farming की संभावनाओं को देखते हुए, भारत के विभिन्न राज्य सरकारों ने इस मॉडल को अपनाया है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों ने इसे बड़े पैमाने पर लागू किया है। आंध्र प्रदेश सरकार ने “रायथू साधिकारा संस्था” के तहत ZBNF को बढ़ावा दिया है।

आंध्र प्रदेश: एक केस स्टडी

आंध्र प्रदेश में ZBNF को तेजी से अपनाया गया है। APCNF कार्यक्रम के तहत, 2021 तक 700,000 से अधिक किसानों ने ZBNF को अपनाया, और 300,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर यह पद्धति लागू की गई है।

किसानों की सफलता की कहानियां

कर्नाटक: कर्नाटक के सूखा प्रभावित क्षेत्रों जैसे रायचूर और कोप्पल में छोटे किसान ZBNF को अपना कर आत्मनिर्भरता प्राप्त कर रहे हैं।

महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में ZBNF ने किसानों की आत्महत्याओं को कम करने में मदद की है। विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों में किसानों ने ZBNF अपनाकर बेहतर परिणाम प्राप्त किए हैं।

ZBNF की चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

हालांकि ZBNF में संभावनाएं हैं, इसे लेकर कुछ चुनौतियाँ भी हैं। आलोचकों का मानना है कि इसे सभी प्रकार की फसलों या क्षेत्रों में लागू करना कठिन हो सकता है।

ZBNF का भविष्य

भविष्य में, Zero Budget Natural Farming के लिए संभावनाएं उज्ज्वल हैं। राज्य सरकारों और गैर सरकारी संगठनों के समर्थन से, ZBNF मुख्यधारा की खेती पद्धति बन सकती है।

निष्कर्ष

Zero Budget Natural Farming भारतीय कृषि में एक क्रांतिकारी बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है। यह एक ऐसी खेती की पद्धति है जो जैविक संतुलन को बढ़ावा देती है, खर्चों में कमी लाती है और मिट्टी की सेहत में सुधार करती है। ZBNF भारतीय कृषि के भविष्य के लिए एक संभावित समाधान बन सकती है।

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Zero Budget Natural Farming in india (ZBNF) पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
  1. Zero-Budget Natural Farming (ZBNF) क्या है?
    ZBNF एक प्राकृतिक खेती की पद्धति है जो बिना बाहरी रासायनिक इनपुट्स (जैसे उर्वरक और कीटनाशक) के खेती करने पर जोर देती है। यह स्थानीय संसाधनों जैसे गोबर, गौमूत्र, और फसल के अवशेषों का उपयोग करती है, जिससे किसानों को बिना कर्ज लिए खेती करने में मदद मिलती है।
  2. ZBNF के मुख्य सिद्धांत क्या हैं?
    ZBNF के चार मुख्य सिद्धांत हैं:

    • जीवामृत: मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ाने के लिए।
    • बीजामृत: बीजों को रोगों और कीटों से बचाने के लिए।
    • मल्चिंग: नमी बनाए रखने और मिट्टी का कटाव रोकने के लिए।
    • वापासा: जल संरक्षण और मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए।
  3. ZBNF से किसानों को क्या लाभ होते हैं?
    ZBNF से किसानों को कई लाभ मिलते हैं, जैसे खेती की लागत में कमी, मिट्टी की उर्वरता में सुधार, बेहतर जल संरक्षण, और अधिक पौष्टिक और रोग-प्रतिरोधी फसलें। इसके अलावा, यह कर्जमुक्त खेती को प्रोत्साहित करता है।
  4. क्या ZBNF सभी प्रकार की फसलों पर लागू हो सकता है?
    ZBNF का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना है, जो सभी प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त हो सकता है। हालांकि, कुछ बड़े पैमाने पर उत्पादित फसलें जैसे गन्ना और कपास में अधिक इनपुट्स की आवश्यकता होती है, जिसके लिए ZBNF को अपनाने में चुनौतियाँ हो सकती हैं।
  5. ZBNF को सफल बनाने के लिए किन संसाधनों की आवश्यकता होती है?
    ZBNF के सफल कार्यान्वयन के लिए गाय से प्राप्त सामग्री (जैसे गोबर और गौमूत्र), स्थानीय जैविक सामग्री, और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आवश्यक है। साथ ही, किसानों को इस पद्धति को अपनाने के लिए शिक्षित करने और समर्थन देने की जरूरत होती है।

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